ASHTAVAKRA GITA
Instruction on self realization
Janaka said 1.1
Instruction on self realization
Janaka said 1.1
Master, how is knowledge to be achieved, detachment acquire, liberation attained?
जनक उवाच - कथं ज्ञानमवाप्नोति,
कथं मुक्तिर्भविष्यति।
वैराग्य च कथं प्राप्तमेतद
ब्रूहि मम प्रभो॥१-१॥
कथं मुक्तिर्भविष्यति।
वैराग्य च कथं प्राप्तमेतद
ब्रूहि मम प्रभो॥१-१॥
वयोवृद्ध राजा जनक, बालक अष्टावक्र से पूछते हैं - हे प्रभु, ज्ञान की प्राप्ति कैसे होती है, मुक्ति कैसे प्राप्त होती है, वैराग्य कैसे प्राप्त किया जाता है, ये सब मुझे बताएं॥१॥
Ashtavakra said:
1.11
If you think you are free you are free.
If you think you are bound you are bound.
It is rightly said: You become what you think.॥11॥
मुक्ताभिमानी मुक्तो हि
बद्धो बद्धाभिमान्यपि।
किवदन्तीह सत्येयं
या मतिः सा गतिर्भवेत्॥१-११॥
बद्धो बद्धाभिमान्यपि।
किवदन्तीह सत्येयं
या मतिः सा गतिर्भवेत्॥१-११॥
स्वयं को मुक्त मानने वाला मुक्त ही है और बद्ध मानने वाला बंधा हुआ ही है, यह कहावत सत्य ही है कि जैसी बुद्धि होती है वैसी ही गति होती है॥११॥
1.12
The soul is witness,
all-pervading, infinite, one, free, inert, neutral, desire-less and peaceful.
Only due to illusion it appears worldly.॥12॥
आत्मा साक्षी विभुः
पूर्ण एको मुक्तश्चिदक्रियः।
असंगो निःस्पृहः शान्तो
भ्रमात्संसारवानिव॥१-१२॥
पूर्ण एको मुक्तश्चिदक्रियः।
असंगो निःस्पृहः शान्तो
भ्रमात्संसारवानिव॥१-१२॥
आत्मा साक्षी, सर्वव्यापी, पूर्ण, एक, मुक्त, चेतन, अक्रिय, असंग, इच्छारहित एवं शांत है। भ्रमवश ही ये सांसारिक प्रतीत होती है॥१२॥
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