ASHTAVAKRA GITA
Instruction on self realization
Janaka said 1.1
Instruction on self realization
Janaka said 1.1
Master, how is knowledge to be achieved, detachment acquire, liberation attained?
जनक उवाच - कथं ज्ञानमवाप्नोति,
कथं मुक्तिर्भविष्यति।
वैराग्य च कथं प्राप्तमेतद
ब्रूहि मम प्रभो॥१-१॥
कथं मुक्तिर्भविष्यति।
वैराग्य च कथं प्राप्तमेतद
ब्रूहि मम प्रभो॥१-१॥
वयोवृद्ध राजा जनक, बालक अष्टावक्र से पूछते हैं - हे प्रभु, ज्ञान की प्राप्ति कैसे होती है, मुक्ति कैसे प्राप्त होती है, वैराग्य कैसे प्राप्त किया जाता है, ये सब मुझे बताएं॥१॥
Ashtavakra said:
1.13
Meditate on unchanging, conscious and non-dual Self.
Be free from the illusion of 'I' and think this external world as part of you.॥13॥
कूटस्थं बोधमद्वैत-
मात्मानं परिभावय।आभासोऽहं भ्रमं मुक्त्वा
भावं बाह्यमथान्तरम्॥१-१३॥
मात्मानं परिभावय।आभासोऽहं भ्रमं मुक्त्वा
भावं बाह्यमथान्तरम्॥१-१३॥
अपरिवर्तनीय, चेतन व अद्वैत आत्मा का चिंतन करें और 'मैं' के भ्रम रूपी आभास से मुक्त होकर, बाह्य विश्व की अपने अन्दर ही भावना करें॥१३॥
1.14
O son, you have become habitual of thinking- “I am body” since long.
Experience the Self and
by this sword of knowledge cut that bondage and be happy.॥14॥
देहाभिमानपाशेन चिरं
बद्धोऽसि पुत्रक।
बोधोऽहं ज्ञानखंगेन
तन्निष्कृत्य सुखी भव॥१-१४॥
बद्धोऽसि पुत्रक।
बोधोऽहं ज्ञानखंगेन
तन्निष्कृत्य सुखी भव॥१-१४॥
हे पुत्र! बहुत समय से आप 'मैं शरीर हूँ' इस भाव बंधन से बंधे हैं, स्वयं को अनुभव कर, ज्ञान रूपी तलवार से इस बंधन को काटकर सुखी हो जाएँ॥१४॥
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