Tuesday, 28 February 2017

Ashtavakra Gita : Instruction on self realization (Text 1.17, 1.18)

ASHTAVAKRA GITA
          
Instruction on self realization
                             
Janaka  said 1.1


Master, how is knowledge to be achieved, detachment acquire, liberation attained?     


जनक उवाच - कथं ज्ञानमवाप्नोति,
कथं मुक्तिर्भविष्यति।
वैराग्य च कथं प्राप्तमेतद
ब्रूहि मम प्रभो॥१-१॥

वयोवृद्ध राजा जनक, बालक अष्टावक्र से पूछते हैं - हे प्रभु, ज्ञान की प्राप्ति कैसे होती है, मुक्ति कैसे प्राप्त होती है, वैराग्य कैसे प्राप्त किया जाता है, ये सब मुझे बताएं॥१॥     



             
Ashtavakra said:

1.17

You are desire-less, changeless, 
solid and abode to calmness, unfathomable intelligent. 
Be peaceful and desire nothing but consciousness.॥17॥


निरपेक्षो निर्विकारो
निर्भरः शीतलाशयः।
अगाधबुद्धिरक्षुब्धो भव
चिन्मात्रवासन:॥१-१७॥


आप इच्छारहित, विकाररहित, घन (ठोस), शीतलता के धाम, अगाध बुद्धिमान हैं, शांत होकर केवल चैतन्य की इच्छा वाले हो जाइये१७

1.18

Know that form is unreal and only the formless is permanent. 
Once you know this, you will not take birth again.॥18॥

साकारमनृतं विद्धि
निराकारं तु निश्चलं।
एतत्तत्त्वोपदेशेन
न पुनर्भवसंभव:॥१-१८॥

आकार को असत्य जानकर निराकार को ही चिर स्थायी मानिये, 
इस तत्त्व को समझ लेने के बाद पुनः जन्म लेना संभव नहीं है१८


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Monday, 27 February 2017

Ashtavakra Gita: Instruction on self realization (Text 1.15,1.16)

ASHTAVAKRA GITA
            
Instruction on self realization
                               
Janaka  said 1.1


Master, how is knowledge to be achieved, detachment acquire, liberation attained?     

जनक उवाच - कथं ज्ञानमवाप्नोति,
कथं मुक्तिर्भविष्यति।
वैराग्य च कथं प्राप्तमेतद
ब्रूहि मम प्रभो॥१-१॥

वयोवृद्ध राजा जनक, बालक अष्टावक्र से पूछते हैं - हे प्रभु, ज्ञान की प्राप्ति कैसे होती है, मुक्ति कैसे प्राप्त होती है, वैराग्य कैसे प्राप्त किया जाता है, ये सब मुझे बताएं॥१॥   

          
Ashtavakra said:

1.15

You are free, still, self-luminous, stainless.
Trying to keep yourself peaceful by meditation is your bondage.॥15॥

निःसंगो निष्क्रियोऽसि
त्वं स्वप्रकाशो निरंजनः।
अयमेव हि ते
 बन्धः
समाधिमनुतिष्ठति॥१-१५॥

आप असंग, अक्रिय, स्वयं-प्रकाशवान तथा सर्वथा-दोषमुक्त हैं। आपका ध्यान द्वारा मस्तिस्क को शांत रखने का प्रयत्न ही बंधन है१५


1.16

You have pervaded this entire universe; really, you have pervaded it all. 
You are pure knowledge, don't get disheartened.॥16॥

त्वया व्याप्तमिदं विश्वं
त्वयि प्रोतं यथार्थतः।
शुद्धबुद्ध
स्वरुप
स्त्वं मा
गमः क्षुद्रचित्तताम्॥१-१६॥

यह विश्व तुम्हारे द्वारा व्याप्त किया हुआ है, वास्तव में तुमने इसे व्याप्त किया हुआ है। तुम शुद्ध और ज्ञानस्वरुप हो, छोटेपन की भावना से ग्रस्त मत हो

You have pervaded this entire universe; really, you have pervaded it all. You are pure knowledge, don't get disheartened.॥16॥

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Sunday, 26 February 2017

Ashtavakra Gita : Instruction on self realization (Text 1.13 & 1.14)

ASHTAVAKRA GITA 
             
Instruction on self realization
                                
Janaka  said 1.1


Master, how is knowledge to be achieved, detachment acquire, liberation attained?     

जनक उवाच - कथं ज्ञानमवाप्नोति,
कथं मुक्तिर्भविष्यति।
वैराग्य च कथं प्राप्तमेतद
ब्रूहि मम प्रभो॥१-१॥

वयोवृद्ध राजा जनक, बालक अष्टावक्र से पूछते हैं - हे प्रभु, ज्ञान की प्राप्ति कैसे होती है, मुक्ति कैसे प्राप्त होती है, वैराग्य कैसे प्राप्त किया जाता है, ये सब मुझे बताएं॥१॥    
            
 Ashtavakra said:

1.13

Meditate on unchanging, conscious and non-dual Self. 
Be free from the illusion of 'I' and think this external world as part of you.॥13॥

कूटस्थं बोधमद्वैत-
मात्मानं परिभावय।
आभासोऽहं
 भ्रमं मुक्त्वा
भावं बाह्यमथान्तरम्॥१-१३॥

अपरिवर्तनीय, चेतन व अद्वैत आत्मा का चिंतन करें और 'मैं' के भ्रम रूपी आभास से मुक्त होकर, बाह्य विश्व की अपने अन्दर ही भावना करें१३

1.14

O son, you have become habitual of thinking- “I am body” since long. 
Experience the Self and
 by this sword of knowledge cut that bondage and be happy.॥14॥


देहाभिमानपाशेन चिरं
बद्धोऽसि पुत्रक।
बोधोऽहं ज्ञानखंगेन 

तन्निष्कृत्य
 सुखी भव॥१-१४॥

हे पुत्र! बहुत समय से आप 'मैं शरीर हूँ' इस भाव बंधन से बंधे हैं, स्वयं को अनुभव कर, ज्ञान रूपी तलवार से इस बंधन को काटकर सुखी हो जाएँ१४


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Saturday, 25 February 2017

Ashtavakra Gita: Instruction on self realization (Text 1.11,1.12)

ASHTAVAKRA GITA  
              
Instruction on self realization
                                 
Janaka  said 1.1


Master, how is knowledge to be achieved, detachment acquire, liberation attained?     

जनक उवाच - कथं ज्ञानमवाप्नोति,
कथं मुक्तिर्भविष्यति।
वैराग्य च कथं प्राप्तमेतद
ब्रूहि मम प्रभो॥१-१॥

वयोवृद्ध राजा जनक, बालक अष्टावक्र से पूछते हैं - हे प्रभु, ज्ञान की प्राप्ति कैसे होती है, मुक्ति कैसे प्राप्त होती है, वैराग्य कैसे प्राप्त किया जाता है, ये सब मुझे बताएं॥१॥   

            
Ashtavakra said:

1.11

If you think you are free you are free.
 If you think you are bound you are bound. 
It is rightly said: You become what you think.॥11॥

मुक्ताभिमानी मुक्तो हि
बद्धो बद्धाभिमान्यपि।
किवदन्तीह सत्येयं
या मतिः सा गतिर्भवे
त्॥१-१

स्वयं को मुक्त मानने वाला मुक्त ही है और बद्ध मानने वाला बंधा हुआ ही है, यह कहावत सत्य ही है कि जैसी बुद्धि होती है वैसी ही गति होती है११

1.12

The soul is witness, 
all-pervading, infinite, one, free, inert, neutral, desire-less and peaceful. 
Only due to illusion it appears worldly.॥12॥

त्मा साक्षी विभुः
पूर्ण एको मुक्तश्चिदक्रियः।
असंगो निःस्पृहः शान्तो
भ्रमात्संसारवानिव॥१-१२॥

आत्मा साक्षी, सर्वव्यापी, पूर्ण, एकमुक्त, चेतन, अक्रिय, असंग, इच्छारहित एवं शांत है। भ्रमवश ही ये सांसारिक प्रतीत होती है१२



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Friday, 24 February 2017

Ashtavakra Gita: Instruction on self realization (Text 1.9,1.10)

ASHTAVAKRA GITA   
               
Instruction on self realization 
                                  
Janaka  said 1.1
Master, how is knowledge to be achieved, detachment acquire, liberation attained?     

जनक उवाच - कथं ज्ञानमवाप्नोति,
कथं मुक्तिर्भविष्यति।
वैराग्य च कथं प्राप्तमेतद
ब्रूहि मम प्रभो॥१-१॥

वयोवृद्ध राजा जनक, बालक अष्टावक्र से पूछते हैं - हे प्रभु, ज्ञान की प्राप्ति कैसे होती है, मुक्ति कैसे प्राप्त होती है, वैराग्य कैसे प्राप्त किया जाता है, ये सब मुझे बताएं॥१॥   
         
 Ashtavakra said:

1.9

A single understanding:
" I am the One Awareness,"
Consumes all suffering
in the fire of an instant.
Be happy.

एको विशुद्धबोधोऽहं
इति निश्चयवह्निना।
प्रज्वाल्याज्ञानगहनं
वीतशोकः सुखी भव॥१-९॥

मैं एक, विशुद्ध ज्ञान हूँ, इस निश्चय रूपी अग्नि से गहन अज्ञान वन को जला दें, इस प्रकार शोकरहित होकर सुखी हो जाएँ

1.10

You are unbounded Awareness --
Bliss, Supreme Bliss --
in which the universe appears
like the mirage of a snake in a rope.
Be happy.

यत्र विश्वमिदं भाति
कल्पितं रज्जुसर्पवत्।
आनंदपरमानन्दः स
बोधस्त्वं सुखं 
चर॥१-१०॥

जहाँ ये विश्व रस्सी में सर्प की तरह अवास्तविक लगे, उस आनंद, परम आनंद की अनुभूति करके सुख से रहें




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Thursday, 23 February 2017

Happy Mahashivratri...To know shivtatva

जानिए शिवतत्त्व को ›

महाशिवरात्रि का महत्व

शिव तत्व जो भूमि के स्तर से कुछ इंच ऊपर होता है वही शिवरात्रि के दिन नीचे आकर भूमि को छू लेता है। यह पवित्र अवधि ध्यान करके एक गहरा समृद्ध आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त करनेका सही समय है। यह आध्यात्मिक विकास और सांसारिक लाभ के लिए एक पवित्र दिन के रूप में माना जाता है।

आज शिवरात्रि के दिन, पदार्थ और चेतना का मिलन होता है| सूक्ष्म जगत और स्थूल जगत साथ में मिलते हैं और यही उत्सव है|

जब हम प्रकृति के नियमों का उल्लंघन करते हैं, तब अशांति होती है| बाढ़, जंगल में आग और अन्य प्राकृतिक आपदाएं और कुछ नहीं बल्कि प्रकृति का क्रोध है| प्रकृति क्रोधित होती है और इसे केवल श्रेष्ठ दिव्य चेतना ही शांत कर सकती है, और वही शिव है| शिव ही प्रकृति के प्रकोप को शांत कर सकते हैं|

तीन प्रकार की अशांति होती हैं: 

मन की अशांतिआत्मा की अशांतिप्रकृति की अशांति

शिवरात्रि की रात को हम दिव्यता से प्रार्थना करते हैं कि वे हमें हर प्रकार के दुःख से मुक्त कर दें – मानसिक, शारीरिक, भावनात्मक, सामाजिक और प्राकृतिक आपदाएं – सबको शान्ति का वरदान दें|

प्रकृति के रहस्य छिपे हुए होते हैं| देखिये, आज हम वाई-फ़ाई के बारे में जानते हैं, लेकिन वाई-फ़ाई का रहस्य तो बहुत लम्बे समय से मौजूद था, पर छिपा हुआ था और यह ईश्वर का वरदान है कि आज विज्ञान में इतनी उन्नति हो रही है| यही वेदों में भी कहा गया है – ‘केवल आपके हस्तक्षेप द्वारा ही, आपके आशीर्वाद के द्वारा ही विज्ञान व्यक्त हो रहा है और प्रकृति के रहस्य स्वयं को प्रकट कर रहे हैं’| इस अथाह ब्रह्माण्ड के विस्तार को कोई भी मन माप नहीं सकता, इस ब्रह्माण्ड के रहस्य केवल आप (ईश्वर) ही हमें प्रकट कर सकते हैं|’

इसलिये, आज के दिन हम अपने हृदय और आत्मा से पूरे विश्व में शान्ति के लिए प्रार्थना करते हैं, समाज में शान्ति और उन्नति के लिए प्रार्थना करते हैं और ज्ञान में उन्नति और प्रत्येक मनुष्य के सुख के लिए प्रार्थना करते हैं|

आप जैसे भी हैं, ईश्वर आपको स्वीकार करता है| यदि आपको लगता हैं कि आप एक काँटा हैं, तब भी आपको स्वीकार किया जाएगा| यदि आपको लगता है कि आप एक पत्ता हैं, तब भी आप स्वीकार किये जायेंगे| यदि आपको लगता है कि आप फल हैं या फूल हैं – तो भी आप स्वीकार किये जायेंगे| आप जैसे भी हैं, और आप प्रगति के जिस भी पड़ाव पर हैं, वह एक दिव्यता आपको पूर्ण रूप से स्वीकार करती हैं और यही सत्य है और यही सुन्दर है| शिव का अर्थ है ‘उदारता’, ‘सत्य’ और ‘सुन्दरता’| और इन तीनों को अलग नहीं किया जा सकता|

इसलिए, आज की रात प्रकृति उत्सव मनाती है – इस सृष्टि में उदारता, सत्य और सुन्दरता का उत्सव!

Wednesday, 22 February 2017

Ashtavakra Gita: Instruction on self realization (Text 1.7, 1.8)

ASHTAVAKRA GITA   
               
Instruction on self realization 
                                  
Janaka  said 1.1
Master, how is knowledge to be achieved, detachment acquire, liberation attained?     

जनक उवाच - कथं ज्ञानमवाप्नोति,
कथं मुक्तिर्भविष्यति।
वैराग्य च कथं प्राप्तमेतद
ब्रूहि मम प्रभो॥१-१॥

वयोवृद्ध राजा जनक, बालक अष्टावक्र से पूछते हैं - हे प्रभु, ज्ञान की प्राप्ति कैसे होती है, मुक्ति कैसे प्राप्त होती है, वैराग्य कैसे प्राप्त किया जाता है, ये सब मुझे बताएं॥१॥


Ashtavakra said:

1.7
You are the Solitary Witness
of All That Is,
forever free.
Your only bondage is not seeing This.

एको द्रष्टासि सर्वस्य
मुक्तप्रायोऽसि सर्वदा।
अयमेव हि ते बन्धो
द्रष्टारं पश्यसीतरम्॥१-७॥

आप समस्त विश्व के एकमात्र दृष्टा हैं, सदा मुक्त ही हैं, आप का बंधन केवल इतना है कि आप दृष्टा किसी और को समझते हैं


1.8 

The thought : " I am the doer"
is the bite of a poisonous snake.
To know : " I do nothing"
is the wisdom of faith.
Be happy.

अहं कर्तेत्यहंमान
महाकृष्णाहिदंशितः।
नाहं कर्तेति विश्वासामृतं
पीत्वा सुखं भव॥१-८॥

अहंकार रूपी महासर्प के प्रभाववश आप 'मैं कर्ता हूँ' ऐसा मान लेते हैं।'मैं कर्ता नहीं हूँ', इस विश्वास रूपी अमृत को पीकर सुखी हो जाइये

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Tuesday, 21 February 2017

Ashtavakra Gita: Instruction on self realization (Text 1.6)

ASHTAVAKRA GITA    
                
Instruction on self realization  
                                  
Janaka  said 1.1 Master, how is knowledge to be achieved, detachment acquire, liberation attained?       


जनक उवाच - कथं ज्ञानमवाप्नोति,
कथं मुक्तिर्भविष्यति।
वैराग्य च कथं प्राप्तमेतद
ब्रूहि मम प्रभो॥१-१॥

वयोवृद्ध राजा जनक, बालक अष्टावक्र से पूछते हैं - हे प्रभु, ज्ञान की प्राप्ति कैसे होती है, मुक्ति कैसे प्राप्त होती है, वैराग्य कैसे प्राप्त किया जाता है, ये सब मुझे बताएं॥१॥

        
Ashtavakra said:

1.6

Right and wrong, pleasure and pain,
exist in mind only.
They are not your concern.
You neither do nor enjoy.
You are free.

धर्माधर्मौ सुखं दुखं
मानसानि न ते विभो।
न कर्तासि न भोक्तासि
मुक्त एवासि सर्वदा॥१-६॥


धर्म, अधर्म, सुख, दुःख मस्तिष्क से जुड़ें हैं, सर्वव्यापक आप से नहीं। न आप करने वाले हैं और न भोगने वाले हैं, आप सदा मुक्त ही हैं

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Ashtavakra Gita: Instruction on self realization (Text 1.4, Text 1.5)

ASHTAVAKRA GITA    

                
Instruction on self realization  
                                  
Janaka  said 1.1 Master, how is knowledge to be achieved, detachment acquire, liberation attained?  


जनक उवाच - कथं ज्ञानमवाप्नोति,
कथं मुक्तिर्भविष्यति।
वैराग्य च कथं प्राप्तमेतद
ब्रूहि मम प्रभो॥१-१॥

वयोवृद्ध राजा जनक, बालक अष्टावक्र से पूछते हैं - हे प्रभु, ज्ञान की प्राप्ति कैसे होती है, मुक्ति कैसे प्राप्त होती है, वैराग्य कैसे प्राप्त किया जाता है, ये सब मुझे बताएं॥१॥





Ashtavakra said:

1.4
Abide in Awareness
with no illusion of person.
You will be instantly free and at peace.

यदि देहं पृथक् कृत्य
चिति विश्राम्य तिष्ठसि।
अधुनैव सुखी शान्तो
बन्धमुक्तो भविष्यसि॥१-४॥

यदि आप स्वयं को इस शरीर से अलग करके, चेतना में विश्राम करें तो तत्काल ही सुख, शांति और बंधन मुक्त अवस्था को प्राप्त होंगे॥४॥



1.5.

You have no caste or duties.
You are invisible, unattached, formless.
You are the Witness  of all things.
Be happy.

न त्वं विप्रादिको वर्ण:
नाश्रमी नाक्षगोचर:।
असङगोऽसि निराकारो
विश्वसाक्षी सुखी भव॥१-५॥

आप ब्राह्मण आदि सभी जातियोंअथवा ब्रह्मचर्य आदि सभी आश्रमों से परे हैं तथा आँखों से दिखाई न पड़ने वाले हैं। आप निर्लिप्त, निराकार और इस विश्व के साक्षी हैं, ऐसा जान कर सुखी हो जाएँ



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Sunday, 19 February 2017

Ashtavakra Gita : Instruction on self realization (Text 1.3)

ASHTAVAKRA GITA   
               
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Janaka  said 1.1 Master, how is knowledge to be achieved, detachment acquire, liberation attained? 

जनक उवाच - कथं ज्ञानमवाप्नोति,
कथं मुक्तिर्भविष्यति।
वैराग्य च कथं प्राप्तमेतद
ब्रूहि मम प्रभो॥१-१॥

वयोवृद्ध राजा जनक, बालक अष्टावक्र से पूछते हैं - हे प्रभु, ज्ञान की प्राप्ति कैसे होती है, मुक्ति कैसे प्राप्त होती है, वैराग्य कैसे प्राप्त किया जाता है, ये सब मुझे बताएं॥१॥

              
Ashtavakra said: 1.3

You are not earth, water, fire or air.
Nor are you empty space.
Liberation is to know yourself
as Awareness alone-
the Witness of these.

न पृथ्वी न जलं नाग्निर्न
वायुर्द्यौर्न वा भवान्।
एषां साक्षिणमात्मानं
चिद्रूपं विद्धि मुक्तये॥१-३॥

आप न पृथ्वी हैं, न जल, न अग्नि, न वायु अथवा आकाश ही हैं। मुक्ति के लिए इन तत्त्वों के साक्षी, चैतन्यरूप आत्मा को जानिए॥३॥


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Saturday, 18 February 2017

Ashtavakra Gita: Instruction on self realization (Text 1.1,1.2)

ASHTAVAKRA GITA   
               
Instruction on self realization 
                                  
Janaka  said 1.1 Master, how is knowledge to be achieved, detachment acquire, liberation attained? 

जनक उवाच - कथं ज्ञानमवाप्नोति,
कथं मुक्तिर्भविष्यति।
वैराग्य च कथं प्राप्तमेतद
ब्रूहि मम प्रभो॥१-१॥


वयोवृद्ध राजा जनक, बालक अष्टावक्र से पूछते हैं - हे प्रभु, ज्ञान की प्राप्ति कैसे होती है, मुक्ति कैसे प्राप्त होती है, वैराग्य कैसे प्राप्त किया जाता है, ये सब मुझे बताएं॥१॥

              
Ashtavakra said: 1.2. To be free, shun the experiences of the senses like poison. Turn your attention to forgiveness, sincerity, kindness, simplicity, truth.

अष्टावक्र उवाच -मुक्तिमिच्छसि चेत्तात्,
विषयान विषवत्त्यज।
क्षमार्जवदयातोष, सत्यं
पीयूषवद्भज॥१-२॥


श्री अष्टावक्र उत्तर देते हैं - यदि आपमुक्ति चाहते हैं तो अपने मन से विषयों (वस्तुओं के उपभोग की इच्छा) को विष की तरह त्याग दीजिये। क्षमा, सरलता, दया, संतोष तथा सत्य का अमृत की तरह सेवन कीजिये॥२॥


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